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इन्सान इन्सान क्या तेरी औकात कितना तेरी जिंदगी क

इन्सान 

इन्सान क्या तेरी औकात
कितना तेरी जिंदगी का साथ 
कितना भागता है कितना भागेगा
फिर भी कभी आसमान छू पायेगा

नजरो के लिए क्षितीज की सीमा 
पैरो के लिए मर्यादो की सीमा
क्या करेगा जान के ब्रम्हांड कीसीमा
कर ले एक बार खुद के अंदर की परिक्रमा कल्पना की दुनिया @#
इन्सान 

इन्सान क्या तेरी औकात
कितना तेरी जिंदगी का साथ 
कितना भागता है कितना भागेगा
फिर भी कभी आसमान छू पायेगा

नजरो के लिए क्षितीज की सीमा 
पैरो के लिए मर्यादो की सीमा
क्या करेगा जान के ब्रम्हांड कीसीमा
कर ले एक बार खुद के अंदर की परिक्रमा कल्पना की दुनिया @#