कभी कभार हम मनुष्य ख़ुद की अनियंत्रित सोच की वज़ह से ख़ुद को दोषी ठहराने लगते हैं। सोचना हमारे वश में नहीं, हम यह तय नहीं कर सकते कि हम क्या सोचना चाहते हैं, क्योंकि जब तक आप यह सोचते हैं कि आपको क्या सोचना हैं क्या नहीं, तब तक आपकी अपनी सोच आप जितना सोच सकते हैं उससे कहीं दूर तक निकल चुकी होती है। इसलिए अपनी सोच की वज़ह से ख़ुद को दोषी मानना उचित नहीं। क्योंकि यह दोष आपका नहीं, आपके दिमाग में घूम रहे अनगिनत विचारों का हैं। परन्तु यदि आप दिमाग में घूम रहे विचारों को दिमाग से बाहर अपनी क्रिया में उतार लेते हैं तो यह पूर्णतः आपका दोष हैं। सोच हमारे वश में नहीं पर क्रिया हमारे अपने वश में हैं। 110/365 सोच कर देखो कि आख़िर सोच है क्या? #cinemagraph #सोच #क्रिया #365days365quotes #bestyqhindiquotes #yqdidi #writingresolution #aprichit