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तपिश इतनी की गल सकता हैं कोई किसी सांचे में ढल सक

तपिश इतनी की गल सकता हैं कोई 
किसी सांचे में ढल सकता हैं कोई

जहा राहें फिसलती जा रही हो वहा
कब तक संभल सकता हैं कोई

किसी कांधे पर सर टिकाकर 
सरे बाज़ार छल सकता हैं कोई

ये मत समझो की अब कुछ बचा नहीं
अंधेरों से अब भी निकल सकता हैं कोई

किसी पर भी यकीं होता ही नहीं
घड़ी भर में बदल सकता हैं कोई

ज़रा रुककर इन हवाओं को सदाएं तो दो
तुम्हारे साथ चल सकता है कोई।

©Sadhna Sarkar
  #Barsaat #ankhae_