इज़हार #वेलेंटाइन डे पश्चिमी देशों के बुध्दिजीवियों ने भारतीय सभ्यता मे घुसपैठ कर प्रेम का त्यौहार बसंत पचंमी मे टांग अड़ा कर "वेलेंटाइन डे" को प्रत्यारोपित कर नवयुतियों/नवयुवकों मे एक नया रोग लगा दिया। खैर छोड़िये, #शब्दग्राम मे 'वेलेंटाइन पर लिखने को कहा गया है। हमारी जब शादी हुई तब "वेलेंटाइन'" को कोई जानता ही नहीं था, बस हम अपने माता पिता के साथ उनके घर गये विचारों का अदान प्रदान होता रहा। उसी समय एक सुंदर सी कन्या "जो अब मेरी सबकुछ है" एक ट्रे मे चाय वगैरह ले आयी, मेरे पिताजी के कहने पर एक कुर्सी पर संकुचाते हुए नज़रें नीची किये बैठ गई। मैं भी शरमाते हुए चोर नज़रों से देख लेता था और वो भी तिरछी नज़रों से देख लेती थी, और जब हम दोनों की नज़रें मिल जाती तो एक प्यारा सा अहसास दिल को छू जाता था। यही हम दोनों का रोज डे, प्रपोज ड़े, सारे ड़े एक ही दिन मे हो गए, फिर पंड़ित जी के अनुसार एक दिन आया हम उसको "गठबंधन ड़े" कह सकते हैं मे बंध गए। और हम शादी के पवित्र बंधन मे बंध गए। आजकल खुल्लमखुल्ला एक गुलाब लेकर नवयुवती/नवयुवक प्यार का इज़हार कर देते हैं, चाहे प्यार का मतलब पता हो या न हो। अब तो प्यार का इज़हार, पहले गुलाब दे कर अजमाते हैं, दूसरे दिन प्रपोज करते हैं और फिर शादी की बात करके खुद ही मुहर लगा देते हैं। घर वालों की मर्जी के खिलाफ भाग जाते हैं। जब प्यार का बुखार उतर जाता है और जीवन भार लगने लगता है तो उसके भयंकर परिणाम से मन कांप उठता है। अंत मे मैं बच्चों से यही कहना चाहूंगा कि प्यार का इज़हार करो, लेकिन अपनी संस्कृति और सभ्यता के दायरे मे रह कर। नरेशचन्द्र"लक्ष्मी" ©Naresh Chandra #लक्ष्मीनरेश #dilkibaat