Natural Morning बारिश का मौसम ही था भर दिया था ताल पोखरा तृप्त हो गयी थी प्यासी धरा रात के निस्तब्धता को भंग करती मैढक की टर॔ टर॔ और झींगुर की आवाज कानों में गूंज रही थी अचानक ही तुम आई थी बारिश से सराबोर बदन से चिपके कपडे गैसुओं से टपककर पलको पर गिरती बूंदे हाथों में टोकरी लिए भर दिये थे आमो से जो अभी अभी पेडों से टपके थे मै पढ रहा था नयनो की भाषा जो मेरी ओर तक रही थी तुम चली गई थी टोकरी छोडकर पर मुझे दे गई वो परिभाषा जो आज तक नही भूल पाया । संजय मासूम मुहब्बत