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Natural Morning बारिश का मौसम ही था भर दिया था ताल

Natural Morning बारिश का मौसम ही था
भर दिया था ताल पोखरा
तृप्त हो गयी थी प्यासी धरा
रात के निस्तब्धता को भंग करती
मैढक की टर॔ टर॔ 
और झींगुर की आवाज
कानों में गूंज रही थी
अचानक ही तुम आई थी
बारिश से सराबोर 
बदन से चिपके कपडे
गैसुओं से टपककर पलको पर गिरती बूंदे
हाथों में टोकरी लिए
भर दिये थे आमो से जो
अभी अभी पेडों से टपके थे
मै पढ रहा था नयनो की भाषा
जो मेरी ओर तक रही थी
तुम चली गई थी टोकरी छोडकर
पर मुझे दे गई वो परिभाषा
जो आज तक नही भूल पाया ।
संजय मासूम मुहब्बत
Natural Morning बारिश का मौसम ही था
भर दिया था ताल पोखरा
तृप्त हो गयी थी प्यासी धरा
रात के निस्तब्धता को भंग करती
मैढक की टर॔ टर॔ 
और झींगुर की आवाज
कानों में गूंज रही थी
अचानक ही तुम आई थी
बारिश से सराबोर 
बदन से चिपके कपडे
गैसुओं से टपककर पलको पर गिरती बूंदे
हाथों में टोकरी लिए
भर दिये थे आमो से जो
अभी अभी पेडों से टपके थे
मै पढ रहा था नयनो की भाषा
जो मेरी ओर तक रही थी
तुम चली गई थी टोकरी छोडकर
पर मुझे दे गई वो परिभाषा
जो आज तक नही भूल पाया ।
संजय मासूम मुहब्बत