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'मतला' वो शेर जो ग़ज़ल के शुरु में है सजता, और जि

'मतला' वो शेर जो ग़ज़ल के शुरु में है सजता, 
और जिसपे ग़ज़ल ख़त्म होती है वो है 'मक़्ता'! 

'क़ाफ़िया' वो जिससे शेर तमाम ताल में आये, 
'रदीफ़' जो तुकबंदी में दोहराया जाने लगता! 

'क़ाफ़िया' बिन ग़ज़ल कहना कभी मुमकिन नहीं, 
पर ग़ज़ल बनाने को 'रदीफ़' ज़रूरी नहीं पड़ता!
shubhrokdedas6046

Shubhro K

Silver Star
New Creator

'मतला' वो शेर जो ग़ज़ल के शुरु में है सजता, और जिसपे ग़ज़ल ख़त्म होती है वो है 'मक़्ता'! 'क़ाफ़िया' वो जिससे शेर तमाम ताल में आये, 'रदीफ़' जो तुकबंदी में दोहराया जाने लगता! 'क़ाफ़िया' बिन ग़ज़ल कहना कभी मुमकिन नहीं, पर ग़ज़ल बनाने को 'रदीफ़' ज़रूरी नहीं पड़ता! #Shayari

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