सारी उम्र गवां दी मैंने इस नासमझी भरे ख्यालात में कि लोग क्या कहेंगे..... पर क्या पता था ये वही लोग है, जो तालियां बजा मुस्कुराएंगे... देख मुझे मेरे बेबस मजबूर हालात में ... एक पल भी ना सुकून का जी सकी,दबा दी ख्वाहिशें सारी ख़ामोशी की आहट में मन की बातें रही मन में ही, जीने लगी थी ज़िन्दगी एक झूठी मुस्कुराहट में उम्र गवां दी सारी , उन लोगों की फ़िक्र में एक दफा भी जो ना चूके ऊंगली उठाने से,ना ही रहे कभी हम जिनके ज़िक्र में ... सारी उम्र गवां दी इस नासमझी भरे ख्यालात में कि लोग क्या कहेंगे.... वजह है ये लोग,जिनके वजह से आज हम घिरे हैं अनगिनत सवालात में..........