नारी, हाय! कितनी बेचारी है तू, रिश्तों के बन्धन में खुद को बांधे रखती है।। लोग क्या कहेंगे बस इसी से बचती है।। पग पग पे लोगो ने ही तुझे आजमाया है।। कभी बहन कभी पत्नी और कभी मां बस इसी रूप में तुझे बनाया है। बहन मेरी भी है नारी! पर मै तुझ सा शौर्यवान नहीं।। अगर मैंने अपना पोरूष तुझ पे ना दिखाया तो मैं मर्दान नहीं।। पत्नी मेरी भी है नारी पर वो परदे में रहती है।। तूने अनुमति दी है अपनी वेशभूषा से, मेरी सोच मुझसे यही कहती है।। तू नारी है सब सहती है देख जरा ये तेरी बनाई दुनिया तुझ से क्या क्या कहती है।। मै नारी हूं सब सहती हूं मै मोंन हूं कुछ नहीं कहती हूं।। मेरे बच्चो में है ममता मेरी,इस ममता से मेरी पहचान है।। बेस्क जलु आग में बस बच्चे मेरे भूखे ना रहे, बच्चो में बसती मेरी जान है।। मै मां हूं निश्छल निकपट निस्वार्थ बस इसी से मेरी पहचान है।।