सब सेल्फियां सहेज कर रखते हो... कुछ किताबें भी लो उन्हें भी पढ़ो और उन्हें भी सहेजो... बहोत हलकी होती हैं मेट्रो में सीट ना भी मिले तो गेट वाली सीट पर कंधा टिका कर पढ़ सकते हैं... मैंने ऐसे बहोत पढ़ी हैं... 1. बहोत पहले एक इंटरव्यू पढ़ा सुना ग्रेट गुलज़ार साहब का जिसमें वो कह रहे हैं "उस किताब ने मेरे जीवन को बदल कर रख दिया...साहित्य के इतने करीब ला दिया...पढ़ने के और जीवन जीने के नज़रिये को ही एक पल में बदल डाला…वह किताब मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुई...वह किताब वाला जब दे रहा था मुझे उस किताब को उस रैक से निकाल कर उसे मालूम ना था कि वह मेरे जीवन का रास्ता निकाल रहा है…और उस किताब का प्रिंट शक्ल वह मंज़र अभी तक याद है " यहां गुलज़ार साहब जिस किताब की बात कर रहे हैं उस किताब का नाम था "The Gardner" बाबा टैगोर द्वारा रचित कुछ नज़्मों का संग्रह है...मैंने नहीं पढ़ी अब तक आप में से किसी को मौका लगा तो पढियेगा और शायद कई तो बहोत ज्ञानी हैं जो जानते हैं क्या पढ़ना है क्या नहीं तो उन लोगो ने इसका महत्तव समझ पढ़ भी ली हो…जिन्होंने पढ़ ली है वो सौभाग्यशाली हैं... "किताबें बदल सकती हैं जीवन तुम्हारा और फिर मार्ग प्रशस्त करती हैं तुम्हारीआने वाली सभ्यताओं का भी" 2. सरदार साहब भगत सिंह जी से जब पूछी गयी उनकी आखरी इच्छा लाहौर लखपत जेल में तो उन्होंने कहा " मुझे मरने से पहले लेनिन के जीवन को पढ़ना है और ये मुझे फांसी के तय दिन से पहले ख़तम करना है"...किताबों के प्रति ऐसा दिलकश प्रेम कि बस मरने से पहले पढ़ना हो अंतिम इच्छा... वाह! ये दर्शाता है कि किताबों को किसी के भी जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण होना चाहिए... "किताबें शांत करती हैं जिज्ञासायें और होती हैं सक्षम तुम्हें देने को जवाब हर तरह के सवालों के"