“बचपन में” जब धागों के बीच माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे, तो मालूम नहीं था एक दिन इस फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।। “#बचपन में” जब धागों के बीच #माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे, तो मालूम नहीं था एक दिन इस #फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।।