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अधूरी नज़्म सुनाऊँ कैसे, मन ही मन गुनगुनाऊँ कैसे..

 अधूरी नज़्म सुनाऊँ कैसे,
मन ही मन गुनगुनाऊँ कैसे..!

मिले ही नहीं जब कहने को शब्द,
फिर मौकों को भुनाओं कैसे..!

शौहरत शामिल नहीं किस्मत में,
शाबाशी का सुकून पाऊँ कैसे..!

बदलते रहे नाकामी के लिबास,
कामयाबी के सलिल से नहाऊँ कैसे..!

ख़ुद का वज़ूद ढूँढ रहा हूँ,
लेखकों की सूची में जाऊँ कैसे..!

©SHIVA KANT
  #adhurinazm