टीका सदा ही रहा है कुछ कड़वा कुछ फीका। बीसीजी टीके को नसबंदी से जोड़ बनाया था लतीफा। कोई विरोध नहीं होता किसी भी उत्पाद विदेशी का स्वदेशी आंदोलन के वारिस उड़ा रहे मजाक स्वदेशी का। कितने भी कानून बना लो तुम आय दोगुना करने के बिना सोचे समझे सियासतदान बैठेंगे थरने पे। संविधान की शपथ लेने वाले संविधान की प्रतियां जला रहे। संविधान खतरे में है ये कैसा लोकतंत्र ला रहे। खुद निंदा करें दें गाली तो है अभिव्यक्ति की आज़ादी दूजा करे इनकी तो इन्हें बर्दाश्त नहीं जरा। टीका सदा ही रहा है कुछ कड़वा कुछ फीका। बीसीजी टीके को नसबंदी से जोड़ बनाया था लतीफा। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ फीका टीका