पतझड़ चल रहा है शहरभर में पेड़ो के पत्ते उड़ रहे है हवा के साथ खुद को हवा को सौंप कर निश्चित हो कर बह रहे है ठीक वैसे ही जैसे एक प्रेमी होता है जो खुद को अपने प्रेम के हवाले कर देता है और बहूत पीछे छोड देता डर को डर समाज का डर परम्पराओ का डर वंश की इज़्ज़त का इन सब से कई आगे निकल कर वो सब बंधनो से मुक्त होता है और बहता रहता है अपनी हवा के साथ,अपने प्रेम के साथ अब उसकी कोई अलग पहचान नही है अब वह सिर्फ और सिर्फ एक प्रेमी है प्रेमी