हीरा लुटे, कोयले पर छापा।। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता, ईमान बिके बाज़ारों में, उसकी कीमत भी क्या पैसा होता। छोटी बात लगे दिल पर, हीरा लुटे, पर कोयले पर छापा, देश रहा लुटता, पर हम खोते रहे हर छोटी बात पर आपा। क्यूँ हम सालों गुलाम रहे, क्यूँ हमले भी हम पे हज़ार हुए, कैसे हर हमलावर ने पहले हमारी कमजोरी को था भांपा। स्वर्णयुग का कालखण्ड था, आज कहो क्या ऐसा होता। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। मेरी ऊंची मीनारें हों, फिर चाहे अपने भी सूली चढ़ जाएं, सर पर पांव रखें या छीने रोटी, कैसे भी आगे बढ़ जाएं। इतिहासों में जवाब कहाँ मिलते हैं, ये तो एक कहानी है, जो बली रहे जो सबल रहे, इतिहास वो अपना गढ़ जाएं। अक्ल कोने में बैठ है रोती, क्या राज कर रहा भैंसा होता, गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। ओछी चाल मैं चलता रहता हूँ, अपनो से जलता रहता हूँ, थोथी सफलता का तमगा लिए निज को छलता रहता हूँ। मैं मनुज कहाँ मैं सफल कहाँ जो है अपनो का साथ नहीं, साये को ही मान मैं अपना संग उसके ही चलता रहता हूँ। बैठ अकेले फिर मैं सोचूं ये ऐसा होता तो क्या वैसा होता। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता। ©रजनीश "स्वछंद" हीरा लुटे, कोयले पर छापा।। गर दिल पे बात लगी होती तो बोलो यहां क्या ऐसा होता, ईमान बिके बाज़ारों में, उसकी कीमत भी क्या पैसा होता। छोटी बात लगे दिल पर, हीरा लुटे, पर कोयले पर छापा, देश रहा लुटता, पर हम खोते रहे हर छोटी बात पर आपा। क्यूँ हम सालों गुलाम रहे, क्यूँ हमले भी हम पे हज़ार हुए,