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शिकायत क्या करूँ दोनों तरफ ग़म का फसाना है, मेरे आग

शिकायत क्या करूँ दोनों तरफ ग़म का फसाना है,
मेरे आगे मोहब्बत है तेरे आगे ज़माना है।
देखकर तुमको अक्सर हमें ये एहसास होता है,
कभी कभी ग़म देने वाला भी कितना ख़ास होता है।
कब तक पियें यह ज़हर-ए-ग़म ऐ साकिए-हयात,
घबरा गये हैं अब तेरी दरियादिली से हम।
इलाही उनके हिस्से का भी ग़म मुझको अता कर दे,
कि उन मासूम आँखों में नमी देखी नहीं जाती।

©Aniket shukla
  शिकायत क्या करू

शिकायत क्या करू #Poetry

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