मातृभूमि के स्वर्ण ताज को गड़ने को आतुर है ,वह पर्वत के तुंग शिखर पर चढ़ने को आतुर है, वह वीर सिपाही हिम् की चट्टानों पर चलने को आतुर है वह वीर सिपाही तपते रेगिस्तानों में जलने को आतुर है वह वीर सिपाही राष्ट्रध्वज को नीलगगन में लहराने को आतुर है वह वीर सिपाही सीमा की रक्षा हेतु मर जाने को आतुर है।