मृत भाषा का चिंतन वंदन व्यक्ति समाज और राष्ट्र के आत्म नल की उन्नति करता है यह दूसरे पर निर्भरता से मुक्त और आत्मनिर्भरता की राह खोलने वाला अमृत भाषा में व्यवहार और शिक्षा किसी के बहिष्कार से परे स्वयं के स्वीकार की दिशा में जाना है जिसका बालक सबसे पहले अपनी मां से सीखता है और फिर परिजनों के साथ उसके विकास करता है इसके लिए उसे किसी प्रकार का अनावश्यक प्रयास नहीं करना पड़ता सीखना है कि यह प्रतिक्रिया प्रतिदिन चलती रहती है इस निधि भाषा की ताकत को पहचानते हुए यह भरत तेंदू हरिश्चंद्र हिंदी की उन्नति शीर्षक विज्ञान में 18 सत्र में कहा था कि निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल यह वह समय था जब आधुनिकता के समय पर कुछ लोगों में अंग्रेजी की आकर्षक पैदा हो रही थी एकता में एकता के सूत्र व्यक्ति समाज और राष्ट्र के विकास के द्वारा निजी भाषा की उन्नति सही जुड़ते खोलते हैं मृत्य भाषा प्रत्येक व्यक्ति को उनके परिवार समाज प्रदेश और देश से जोड़ती है उनके बीच स्थापित करती है वर्ष 1918 में हिंदी सहित इंद्र के अधिवेशन में गांधी जी ने कहा था कि अंग्रेजी व्यापक बादशाह पर यदि अंग्रेज और व्यापक ना रहे तो अंग्रेजी में सर्व व्यापक नहीं रहेगी हम अब अपनी भाषा की अपेक्षा कर कर उसकी हत्या नहीं करनी चाहिए भारत व सनातन ज्ञान परंपरा का केंद्र रहा है विदेशी दासता के दौर में उनके रूपों में ज्ञान की इस सनातन परंपरा को नष्ट करने के प्रयास होते रहे ©Ek villain #मृत भाषा में चिंतन का समय #selflove