कहते हो मीत मेरे भुला दूं मैं तमाम पुरानी यादों को, जीवन मैं अब गुजारु नयी उम्मीदों नयी खुशियों संग, पर क्या याद हैं तुम्हें मैं खुद को देखना चाहती थी तुम्हारे नैनो के दर्पण कैसे भुलू मीत मेरे किया तुमको जीवन अर्पण ये फिर कैसे मैं तुम बिन जीवन के पथ पर निकलूं तुम ही आकर बतला दो तरकीब वो मैं कैसे तुमको भुलूं। indu mitra मीत मेरे कैसे भुला दूं तुम्हें