ख़त vs इमेल नया फ़ैशन ,हवा में बात फ़िसल आती है ख़त की ख़ुशबू कहाँ इमेल में आ पाती है पर्दादारी की हर इक बात एम एम एस बनकर अब नहीं छुपती सरेआम सी हो जाती है 🌋डाकिया ख़त को पहले हाथ में रख जाता था इसके बदले में वो बक़शीश भी कभी पाता था बेमुरव्वत से अब इनबॉक्स में दिख जाती है ख़त की ख़ुशबू कहाँ इमेल में आ पाती है 🌋राह तकना वो मज़ा इंतज़ार क्या कहना उनके हाथों की नर्म नर्म छुवन क्या कहना बे बनावट बे सजावट ही चली आती है ख़त की ख़ुशबू कहाँ इमेल में आ पाती है 🌋मैं न रहता तुम न होते, मगर ख़त होते मैं रहूँगा, न तुम रहोगे, मगर ख़त होंगे आलमारी में पड़े डिब्बे उनके छत होंगे ईमेल होगा नही ये बात सता जाती है ख़त की ख़ुशबू कहाँ इमेल में आ पाती है 🌋मैंने माना ये जहां ने है तरक्क़ी कर ली लाख़ तरक़ीबों से है हाथ की मुट्ठी भर ली कितने जज़्बातों को तकनीक मसल जाती है ख़त की ख़ुशबू कहाँ इमेल में आ पाती है . अशरफ फ़ानी कबीर ख़त vs Email