सब के अंतर में होता है, एक विशद देहातीपन। मगर बाहरी आडम्बर ने, छीन लिया प्राकृतिकपन।। बचपन, यौवन और बुढापा, का अनुक्रम अब गौण हुआ। अपना ही खोकर अपनापा, मनुज समझता प्रौढ़ हुआ।। झूठी तृष्ना और पिपासा, दिखते हैं मन दामन में। दूरी तय कर लेने वाले, दिखें शून्य विस्थापन में।। ....कौशल तिवारी . . . ©Kaushal Kumar #मनुष्यताआजकल