वो नाव की पतवार संभाले वो जीवन की बागडोर संभाले वो नटखटपन लड़कपन वो शौक आजमाइश वह दौर था ना समझी का ये दौर है समझदारी का कभी लौट आना तुम उस गली में पलके बिछाए बैठे हैं,,, दरिया में कमल के खिले दल महक रहे सब मिलकर तुम्हारी बाट जुटाए बैठे,,,, तुम आना संग कश्ती में