कहीं काले तो कहीं सफेदपोश बेचते हैं कोई ज़िंदगी तो कोई मौत बेचते हैं कहीं हवा अमीर तो गुर्दे गरीब बेचते हैं दवा के नाम पे कुछ लोग अपना ज़मीर बेचते हैं जलती चिताओं और गंगा मैं बहती लाशों की कहीं तस्वीर तो कहीं खबर बेचते हैं जिन्हें आंसूं और कंधे भी नसीब न हो सके बच्चे उनके बैठकों मैं अदब और तमीज़ बेचते हैं कब्र अभी गीली है और आँखें भी नम है अनाथ हुए बच्चों को ये ले हर कीमत बेचते हैं मजबूरी है या मौसिकी ये तो वो ही जाने निकलते हैं जो घर से बेवजह वो मेरा वतन बेचते हैं बूढे और बच्चे भी अब तो ये पूछते हैं क्या हम ही हैं जो कीटाणु के बम बेचते हैं उठाते है सवाल हुक्मरानों पे सभी क्यूँ ये मंदिरों में राम और मस्जिदों मैं रहीम बेचते हैं आंखे भी बंद हैं और होंठों पे भी ताले हैं ये राजनीति है मियां बन अंधे गूंगे यहां हर मंज़र बेचते हैं ऐ मेरे खुदा ऐ मेरे वज़ीर तू ही बता क्या जन्नत पाने के लिए लोग अपना ज़मीर बेचते हैं कटेगी ये रात हो लंबी ही सही लेकिन जो मिलो परिन्दों से कल तो ना कहना हम सफ़र बेचते हैं ©Sahil #corona #Death #medicine #doctor #lawyer #hawa #Khuda #rajneeti