बहुत गिनाते रहे ऐब तुम क्या मिला दूसरों को उनका सच दिखाने से निभा न सकोगे एक दिन जब गुज़रोगे मेरे सब्र के पैमानों से उस असीम को मैं पुकार रहा उसको भी मेरी तलाश है नशा था उतर गया सबकुछ छोड़, चला मैं अब तेरे मयखाने से... ©abhishek trehan 🎀 Challenge-408 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी रचना लिखिए।