क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये अब अनल लग जाए तुझ बिन मेरे हर एक ख़्वाब में तू नहीं तो जिंदगी भी सूनी पड़ी किसी राह में क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये एक तेरे होने से, थे कितने ख़्वाब जिंदा अब तो तुझ बिन लग रहा जी के भी नहीं हैं हम जिंदा क्या करूं अपने लिए अब तुम ना रहीं जिंदगी में क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये तुम जो थी मेरी प्राणअधार तुझ बिन हो गया निराधार ना मोड़ पर, ना राह पर ना मिले कोई अब यार मैं बेख़याली हो गया हूं बिन प्राण का है ये तन क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये #विसंगतियाँ_ज़िन्दगी_की_01 #अनल #प्राणअधार