कही अनकही बातें, आज भी दफ़्न है मेरे ज़हन में, जो मैं कभी बयां, ना कर सका उसके सामने। बहुत ही हिम्मत जुटाकर, जाता था मैं उसके सामने, सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे, के दिल के अल्फ़ाज जुबान पर ना ला पाता था। पता नहीं क्यों एक डर सा था मेरे ज़हन में, उसको खोने का मेरे इज़हार से, इस डर के कारण ही आज में, रह गया अकेला इस दुनिया के गलियारों में। आज अफ़सोस बहुत होता है मुझे, पर इस अफ़सोस का अब क्या फायदा, जिंदगी चल रही है आज अपनी रफ़्तार से, बस वो लम्हा था सुहाना जो चला गया, और रह गई मेरे प्यार की दास्तान मेरे ज़हन में ही । -Nitesh Prajapati ♥️ Challenge-923 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।