मृत भाषा की महता से मुंह मोड़ने की खातिर शीर्षक से प्रकाशित आलेख में गिरी व में चुने लोगों को मृत भाषा के प्रति जागरूक करने के साथ उनकी जरूरतों को खूबी वर्णन किया इन ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के बाद हिंदुस्तान में संस्कृति से लेकर समाज तक ऐसे बदलाव हुए जिसमें हमारी परंपरा का कायापलट कर दिया लिख लेखन और सीखने की प्रक्रिया में भाषा में हो ना सच बात है जो वास्तविक रूप से सत्य है कोई भी नौसिखिया बजाय किसी भी अन्य भाषा की अपनी भाषा में ही चीजों को बेहतर समझ पाता है हमने अंग्रेजी को विश्व भर में बोलने वाली भाषा समझ कर अपने भीतर इस तरह उतार लिया है कि जब अपने ही देश में हिंदी बोलना शर्मनाक होने लगा है यदि अंग्रेजी भाषा से अधिक जरूरी है तो चीन की पश्चिमी संस्कृति गुलाम हो गई होती अपनी भाषा को ही प्राथमिकता दी है इससे साबित होता है कि मृत भाषा से भी समाज विकसित हो सकता है हर भाषा अपनी प्राचीन संस्कृति से प्रेरित होकर बनी हुई होती है हालांकि कोई बात इतना गलत नहीं है किंतु माता के स्थान पर किसी अन्य भाषा को स्वीकार कर लेना समाज में नई संस्कृति को बढ़ावा देना जैसा है इसे अपनी संस्कृति के नष्ट होने का खतरा होता है अपनी संस्कृति को नजरअंदाज करके अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई उनकी भाषा को आज तक कर रखा है मानो यह उनकी विरासत थी जिसे हर हिंदुस्तानी को बचा कर रखना है इसके कारण पश्चिमी संस्कृति पर जा रहे हैं जो हमारी संस्कृति को नष्ट कर रही है इससे अपनी भाषा के प्रतिवेदन जैसे परिस्थितियां जन्म लेने लगी है ©Ek villain #मृत भाषा को बचाना जरूरी #selflove