10. मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए -अदम गोंडवी "मैं #चमारों की #गली तक ले #चलूँगा आपको" मैं #निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ #मेरे #गाँव में तट पे #नदियों के घनी #अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज #पांचाली #उघाड़ी जा रही या #अहिंसा की जहाँ पर #नथ #उतारी जा रही