|| श्री हरि: ||
20 - क्रीड़ा
'दादा! तू बैठ। हम तुझे देवता बनायेंगे।' दाऊ दादा ही इस प्रकार स्थिर बैठ सकता है। यह तो बना बनाया देवता है। लेकिन कन्हाई को और दूसरे भी सखाओं तो क्रीडा करनी है।
दिन का प्रथम प्रहर है। यमुना-पुलिन की कोमल रेणुका का स्पर्श शरीर को शीतल, सुखद लगता है इस वसन्त ऋतु में। आज बालक गोचारण करने आये तो प्रारम्भ में ही पुष्प, गुज्जादि संग्रह में नहीं लगे। सब आ गये पुलिनपर। बछड़े-बछड़ियां समीप हरित तृण चरने में लग गयीं। अभी पुलिनपर समीप के वृक्षों की छाया है। शीतल पुलिन-रेणुका प्रिय लगी और कन्हाईं बैठ गया रेत पर। पटुका, वनमाला उतार दिया इसने और पैर फैला दिये। दोनों मुट्ठियों में भरकर रेणुका अपनी जांघों पर, घुटने पर डालने लगा।
श्याम के बैठते ही गोप कुमारों में से अनेक उसके पास आकर आगे-पीछे बैठ गये। अनेक जहाँ-तहाँ उसी के समान पैर फेलाकर बैठ गये। प्रायः सबने वनमाला, पटुके उतार धरे। अब रेणुका स्नान के अनन्तर यमुना में स्नान भी तो करना है सबको।