आज सुन भी जाओ, ये फलसफा जो मजबूरी है, दिल तोड़ना फिर सिलना, ये कैसी फितूरी है। दिल के बंजर पड़े दीवार में, इश्क की बूंदें पड़ना ज़रूरी है, धड़कन रुक न जाए कहीं, ये सांसों को समझना भी ज़रूरी है। नहीं संभालता ये इश्क़ अब, टूटकर बाहों में बिखरना ज़रूरी है, तुम समेट लो बाहों में हमें, इश्क की यही दस्तूरी है। जो बातें अधूरी हैं, कहना भी ज़रूरी है, हां दूर रहना मजबूरी है, दिल लगना भी ज़रूरी है। मिलना है तुझसे खुद को खोने से पहले, आज गले लगना ज़रूरी है, यादों में ही टूटकर जीना है अब, ये जो जीवन अधूरी है। नहीं रुकता सिलसिला दर्द का, अश्क को गिरना भी ज़रूरी है, फिर से अश्क को दिल के दरिया में संभालना, ये कैसी मजबूरी है। तुम पास आ जाओ, ये धड़कन सुनना भी ज़रूरी है, मन की जो प्रीत अधूरी है, प्रीत की रीत करना जो पूरी है। तेरे लबों से खुशबू चुराके, तेरी दिल की धड़कनों को बढ़ाना भी ज़रूरी है, आओ प्यास बुझा जाए, ये जो वर्षों की दूरी है, हां जो मिलन अधूरी Dहै। कुछ बातें अधूरी हैं, कहना भी ज़रूरी है, हां दूर रहना मजबूरी है, तो दिल लगना भी ज़रूरी है। प्लीज शियर