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महक रही है गली गली, महक रहा ये शहर है..! तेरे इश

 महक रही है गली गली,
महक रहा ये शहर है..!

तेरे इश्क़ को जाना हमने,
सदा लिखा यूँ क़हर है..!

बदल रही है हवा भी अब,
जैसे रब की ये महर है..!

खिल रहा है इश्क़ का ग़ुलाब,
ख़त्म मन में बसा ज़हर है..!

गुज़री है जबसे तू शहर से मेरे,
मोहब्बत की चली ख़ूब लहर है..!

©SHIVA KANT
  #galigalimahakrhi