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लबरेज़ है मेरी पिछली जिंदगियाँ आवारगी की दास्तानों

लबरेज़ है मेरी पिछली जिंदगियाँ आवारगी की दास्तानों से, 
जैसे विरासत में मिली हो मुझको - ये मुस्तक़िल ख़ानाबदोशी मेरी! 

चाहे तो खंगाल कर निकाल लेना मेरे ज़हन से अपनी यादें भी, 
तेरे इश्क़ की कीमत अदायगी में - कम जो पड़े सरफ़रोशी मेरी! 

ये शब आख़िरी हो सकती है, हो सकता है आज सो जाऊँ मैं, 
देख तो ज़रा, कैसे शाम ही से - बढ़ने लगी है मदहोशी मेरी! 

जैसे ज़िंदगी की नाक में दम थे, मौत को भला क्यों छोड़ दें? 
कसम खाता हूँ वो भी घबरा जायेगी - देख कर ये गर्मजोशी मेरी!

©Shubhro K
  #12May2022
Manali Rohan Pushpvritiya  Monika  feeling Darshan Raj