कलम शब का सुकूत दश्त की तन्हाई दे गया क्या क्या वह यादगार शनासाई देगया आंखों की तरह दिल के दरीचे भी खुल गये झोंका हवा का ज़ख्म को बीनाई दे गया कातिल की दोस्ती का सज़ा याफता हुं मे मांगा था दर्द ज़हरे मसीहाई देगया झुक कर तेरी जबी पे हया जिसको ले उड़ी वह रंग और भी तुझे राअनाई दे गया मैने (कलम) समझ के उठाया जो मोज को तूफान मेरी सोच को गहराई दे गया #Mustakeem rafi #कलम Musher Ali