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गर्मी (दोहे) गर्मी जब से आ गई, बहे स्वेद की धार।

गर्मी (दोहे)

गर्मी जब से आ गई, बहे स्वेद की धार।
धूप लगे घनघोर है, सूरज करे प्रहार।।

जल शीतल पीने लगे, बुझे न फिर भी प्यास।
गला सूखता है बहुत, क्या आएगा रास।।

धरा काँपती है बहुत, जैसे चढ़ा बुखार।
राहत भी मिलती नहीं, बहती गरम बयार।।

छाता लेकर घूमते, है गर्मी का जोर।
गर्मी गर्मी कर रहे, मचा रहे हैं शोर।।

बगिया में जब फल लगे, खुशी मनाते लोग।
मार मार पत्थर उसे, ले कर करते भोग।।

हाल सभी बेहाल हैं, गर्मी का है जोश।
गर्मी की इस तपन से, उड़ते सबके होश।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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गर्मी (दोहे)

गर्मी जब से आ गई, बहे स्वेद की धार।
धूप लगे घनघोर है, सूरज करे प्रहार।।

जल शीतल पीने लगे, बुझे न फिर भी प्यास।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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