कविता प्रसंग :- मधुर यामिनी रात मह़फूज़ रही मैं रात भर सैय्या जी के बाहों में ननद नंदनी जल उठी ऐसी वैसी ख़्वाबों में.... थी मधुर यामिनी कि रात टल गई करते -करते बात सखियाँ सहेलियाँ जल उठी जैसे वक्त न बची हो हाथों में अपनी खेती अपना है धन मह़फूज़ रही मैं रात भर सैय्या जी के बाहों में ननद नंदनी जल उठी ऐसी वैसी ख़्वाबों में..... डालो बीज उपजेगा अन्न अपनी धरती अपना है रतन फिर विचलित क्यों करती मन मह़फूज़ रही मैं रात भर सैय्या जी के बाहों में ननद नंदनी जल उठी ऐसी वैसी ख़्वाबों में... ©Anushi Ka Pitara #मधुर #यामिनी #रात #She_and_Society