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जिस्म अब दिखता कहां है,रूह की झंकार में, दर्द मेरा

जिस्म अब दिखता कहां है,रूह की झंकार में,
दर्द मेरा बेसबर फिर,जा के उलझे यार में।
इंतहा कैसे कहें जब,तू भी उलझी जी रही,
मानना इजहार मुश्किल,मौत सी इनकार में #मुश्किले
जिस्म अब दिखता कहां है,रूह की झंकार में,
दर्द मेरा बेसबर फिर,जा के उलझे यार में।
इंतहा कैसे कहें जब,तू भी उलझी जी रही,
मानना इजहार मुश्किल,मौत सी इनकार में #मुश्किले