दिल पे जख्मों का सिलसिला देखो। क्या वफ़ा से हमें, मिला देखो ।। फिर भी करता हूं ,वफ़ा की बातें । ऐ जहां मेरा ,हौसला देखो ।। तप रहा जिस्म मेरा ,बारिश में । दिल कोई आज ,फिर जला देखो ।। उनके कांटों पे, भी नज़र रखना । फुल को जब ,खिला खिला देखो ।। यूं ही मर मर के, जिंदा हूं मैं । मौत से मेरा, फासला देखो ।। ईमान गिरवी है ,यहां जिसके "मनीष" । सर उठाए घर से, निकला देखो ।। कुमार मनीष माटीगोड़ा (जादूगोड़ा) सामयिक