खामोश अन्धेरा था, है , और रहेगा मुझे काला हाथी ऐसे ही थोड़ी कहते है श्रेष्ठता का बोध बहुत घातक है। ये धर्म उस धर्म से श्रेष्ठ है, हमारी धार्मिक किताब में ही अंतिम सत्य है, उसे बदल नहीं सकते। हमारी धार्मिक किताब ऊपर वाले ने लिखी है, उसका आदेश लिखा है हमारी किताबों में, उसे बदलोगे तो बर्दाश्त नहीं होगा। हमारी जाति तुम्हारी जाति से श्रेष्ठ है। हमारी नौकरी तुम्हारी नौकरी से श्रेष्ठ है, हमारी नस्ल तुम्हारी नस्ल से बेहतर है, हमारे पूर्वज दुनिया के सबसे जागरूक और दूरदर्शी पूर्वज थे, तुम्हारे पूर्वज तो सब अनपढ़ और जाहिल थे। गाय ज़्यादा श्रेष्ठ है क्योंकि हमारे धर्म में उसे श्रेष्ठ कहा गया है, सुअर तो नीच पशु है क्योंकि हमारे धर्म में उसे हीन कहा गया है। लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड कुत्ते होते हैं, ये सड़क पर चलने वाले कुत्ते सबसे निचली नस्ल के होते हैं। ये सब्जी बेचने वाला, मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर कहाँ हमारी बराबरी.... आदि ये है श्रेष्ठता का गुणगान अभी हाल में ही केरल प्रांत में एक हृदय विदारक घटना घटित हुई है। मनुष्य का अपने को श्रेष्ठ समझना और प्रकृति के अन्य जीवों को अपने से कमतर समझना, पूरी मानवता को एक विनाश की ओर ले जा रहा है। हम इस प्रकृति के सभी जीवों के बराबर हैं, उनसे श्रेष्ठ नहीं हैं, यह हमें समझने की ज़रूरत है। जिस विषाणु से हम सभी जूझ रहे हैं, वह इसी श्रेष्ठता बोध का ही दुष्परिणाम है। केरल की घटना के बाद हम सभी हाय तौबा मचा रहे हैं लेकिन हम दोगले लोग हैं, हम दो दिन बाद यह घटना भूल जाएंगे। अब तो वह जीव हमारे बीच नहीं रहा और अब हम उसके लिए रोना पीटना कर रहे हैं, इसी क्षण के लिए किसी शायर ने कहा है