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आजकल सझने व समझाने वाला जमाना ही नहीं रहा या फिर ल

आजकल सझने व समझाने वाला जमाना ही नहीं रहा या फिर लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो गयी है या फिर लोग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहते है। वो किसी दुसरे का बजूद वर्दाशत नहीं कर पाते और दूसरे को मानना में उनकी इज्जत घटत है। जो संबल है, प्रबल है, ओहदेदार है, कमाते है वो अपने पर आश्रित लोगों का जीवन जीना दुश्वार कर देते है क्यों कि वह खुद को सर्व गुण सम्पन्न और कोई न गलती करने वाला समझते है और गलती हो भी जाये तो उसे बार बार दोहराते है ये जता कर कि उन्हे गलतियां करने का पूरा का पूरा अधिकार प्राप्त है  और उन पर आश्रित लोग उनके गुलाम है जिन्हें उनके हर फैसले को माना उनका धर्म उन्हें बिना सोचे समझे उनकी हर बात को मानना होगा  यहाँ समझने का ठीकरा केवल एक ही पर नहीं थोपा जा सकता दोंनों तफ से  कोई समझने वाला भी तो होना चाहिये। समय और इज्जत तो सबको चाहिये पर दुसरे की बात और मौजूदगी किसी को बर्दाशतल नहीं एसे में समझना समझाना पत्थर पे सिर मारना है 
      पारुल शर्मा #कुछ_लोग_ऐसे_भी
आजकल सझने व समझाने वाला जमाना ही नहीं रहा या फिर लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो गयी है या फिर लोग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहते है। वो किसी दुसरे का बजूद वर्दाशत नहीं कर पाते और दूसरे को मानना में उनकी इज्जत घटत है। जो संबल है, प्रबल है, ओहदेदार है, कमाते है वो अपने पर आश्रित लोगों का जीवन जीना दुश्वार कर देते है क्यों कि वह खुद को सर्व गुण सम्पन्न और कोई न गलती करने वाला समझते है और गलती हो भी जाये तो उसे बार बार दोहराते है ये जता कर कि उन्हे गलतियां करने का पूरा का पूरा
आजकल सझने व समझाने वाला जमाना ही नहीं रहा या फिर लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो गयी है या फिर लोग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहते है। वो किसी दुसरे का बजूद वर्दाशत नहीं कर पाते और दूसरे को मानना में उनकी इज्जत घटत है। जो संबल है, प्रबल है, ओहदेदार है, कमाते है वो अपने पर आश्रित लोगों का जीवन जीना दुश्वार कर देते है क्यों कि वह खुद को सर्व गुण सम्पन्न और कोई न गलती करने वाला समझते है और गलती हो भी जाये तो उसे बार बार दोहराते है ये जता कर कि उन्हे गलतियां करने का पूरा का पूरा अधिकार प्राप्त है  और उन पर आश्रित लोग उनके गुलाम है जिन्हें उनके हर फैसले को माना उनका धर्म उन्हें बिना सोचे समझे उनकी हर बात को मानना होगा  यहाँ समझने का ठीकरा केवल एक ही पर नहीं थोपा जा सकता दोंनों तफ से  कोई समझने वाला भी तो होना चाहिये। समय और इज्जत तो सबको चाहिये पर दुसरे की बात और मौजूदगी किसी को बर्दाशतल नहीं एसे में समझना समझाना पत्थर पे सिर मारना है 
      पारुल शर्मा #कुछ_लोग_ऐसे_भी
आजकल सझने व समझाने वाला जमाना ही नहीं रहा या फिर लोगों की बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो गयी है या फिर लोग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहते है। वो किसी दुसरे का बजूद वर्दाशत नहीं कर पाते और दूसरे को मानना में उनकी इज्जत घटत है। जो संबल है, प्रबल है, ओहदेदार है, कमाते है वो अपने पर आश्रित लोगों का जीवन जीना दुश्वार कर देते है क्यों कि वह खुद को सर्व गुण सम्पन्न और कोई न गलती करने वाला समझते है और गलती हो भी जाये तो उसे बार बार दोहराते है ये जता कर कि उन्हे गलतियां करने का पूरा का पूरा
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Parul Sharma

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