घिरी होंगी बेटियाँ जब कभी अँधेरी रातों मे। तस्सली झूठी ही सही वो खुद को दिलाई होंगी। लगे हालात बुरे होंगे तो गुहार मदद की लगाई होंगी जब छूना चाहा होगा दरिंदों ने उन्हें उससे पहले वो, सौ बार चिल्लाई होंगी। भईया जाने दो न हमे इस बात की दी वो , अंगीनात दुहाई होंगी। कसमें माँ बाप की उन्हके उन्हें वो,बार-बार खिलाई होंगी। जब सुना न होगा एक भी दरिंदों ने उन्हके तो वो , इंसानियत पे सरमाई होंगी। संजोई होंगी सपनें जो कभी आसमां मे उड़ने की, उसे जमीं पे गवाई होंगी। जब मिला न होगा कोई भी सहारा उन्हें तो उम्मीदों की नाव, सुखी सड़क सड़क पे डुबाई होंगी। लिखने मे भी हाथ कांपते हैं मेरे,की कैसे वो दरिदों की दरिंदगी से नहाई होंगी। और जब छोड़ा न होगा लहू जिस्म मे दरिंदों ने उन्हके, तब जाकर कही वो खुद के लिए जिंदगी से पहले मौत को बुलाई होंगी। फिर कभी न टूटे जो नींद, खुद को उस नींद मे सुलाई होंगी। और फिर कभी बेटी बनाकर न भेजना हमे इस जहाँ मे, ऐसी बिनती वो खुदा को सुनाई होंगी। ©Ps Chandel घिरी होंगी बेटियाँ जब कभी अँधेरी रातों मे। #LookingDeep