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लिखती हूँ कुछ पंक्तियाँ मैं कभी कम कभी ज़्यादा मैं

लिखती हूँ
कुछ पंक्तियाँ मैं
कभी कम कभी ज़्यादा मैं
हाँ..
लिखती हूँ शायद कविता मैं
मन,हृदय के भावों पर,
दिल के अरमानों पर,
दबे-उभरे एहसासों पर,
उछलती-उफ़नती इच्छाओं पर,
कभी इस पर, कभी उस पर,
नदी,पर्वत,झरने,सागर,
लहरें,बारिश,पानी
सभी पर,
लेकिन...
लिखती हूँ बस..
'तुमको' ही मैं
कभी खुलकर तो कभी छिपकर,
कभी हँसकर तो कभी रोकर,
कभी जुड़कर तो कभी टूटकर,
कभी समर्पण में कभी पश्चाताप में
कभी हार में कभी जीत में
कभी ऐसे ही कभी वैसे ही
कभी यूँ ही,
हाँ..
'तुमको' ही बनाती हूँ
आधार शब्दों का,
श्रृंगार भावों का,
आकार मेरी कविता का,
लेखन मेरे 'प्रेम' का
लक्ष्य तुम्हारे हृदय का..!
🌹 लिखती हूँ
कुछ पंक्तियाँ मैं
कभी कम कभी ज़्यादा मैं
हाँ..
लिखती हूँ शायद कविता मैं
मन,हृदय के भावों पर,
दिल के अरमानों पर,
दबे-उभरे एहसासों पर,
लिखती हूँ
कुछ पंक्तियाँ मैं
कभी कम कभी ज़्यादा मैं
हाँ..
लिखती हूँ शायद कविता मैं
मन,हृदय के भावों पर,
दिल के अरमानों पर,
दबे-उभरे एहसासों पर,
उछलती-उफ़नती इच्छाओं पर,
कभी इस पर, कभी उस पर,
नदी,पर्वत,झरने,सागर,
लहरें,बारिश,पानी
सभी पर,
लेकिन...
लिखती हूँ बस..
'तुमको' ही मैं
कभी खुलकर तो कभी छिपकर,
कभी हँसकर तो कभी रोकर,
कभी जुड़कर तो कभी टूटकर,
कभी समर्पण में कभी पश्चाताप में
कभी हार में कभी जीत में
कभी ऐसे ही कभी वैसे ही
कभी यूँ ही,
हाँ..
'तुमको' ही बनाती हूँ
आधार शब्दों का,
श्रृंगार भावों का,
आकार मेरी कविता का,
लेखन मेरे 'प्रेम' का
लक्ष्य तुम्हारे हृदय का..!
🌹 लिखती हूँ
कुछ पंक्तियाँ मैं
कभी कम कभी ज़्यादा मैं
हाँ..
लिखती हूँ शायद कविता मैं
मन,हृदय के भावों पर,
दिल के अरमानों पर,
दबे-उभरे एहसासों पर,