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असामाजिक हो गये समाज मे कहने को जनता के राज मे। सा

असामाजिक हो गये समाज मे
कहने को जनता के राज मे।
सामाजिक न्याय की बात
है जैसे अमावस की रात।
दिवस तक है सामाजिक न्याय सिमित
जो है वादी को भरमाने का निमित।

©Kamlesh Kandpal
  #सामाजिक न्याय
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Kamlesh Kandpal

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#सामाजिक न्याय #कविता

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