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औरत👉 कुछ नहीं कहती कुछ नहीं मांगती कुछ नहीं चा

औरत👉

कुछ नहीं कहती

कुछ नहीं मांगती

कुछ नहीं चाहती

बस छोटी-छोटी 

खुशियां होती है औरतों की..


जरूरत के सामान के साथ

सब छोड़ के आई है

यादों के पुलिन्दे के सिवाय

कुछ भी नहीं लाई है ।


उस निर्वासन, 

उस विलगता, 

उस बिछोह, 

उस अकेलेपन का दर्द 

महसूस भी होना जरूरी है ......


पहले ही दिन से 

सब बदल जाता है

रसोई, आँगन, दरवाजा

बाथरूम, छत और रसोई ।


बीस-पच्चीस बरस तक

जिस जगह खेली-पली-बढ़ी

वो एक पल में छूट जाता है

रह-रहकर बस याद आता है ।


उसे क्या चाहिये

सोना-चांदी, हीरे मोती

मंहगें वस्त्र, धन-दौलत

नहीं... नहीं 

ये सब मिट्टी है उसके लिये

ये सब तो वो संग ही ले आई ।


उसे समानुभूति - सम्मान

करने वाला और 

बिना कहे समझने वाला

एक हमसफर चाहिये...


उसे सच्चा महत्व- प्यार 

देने वाला और 

अकेलापन दूर करने वाला

एक अदद दोस्त चाहिये....


वो रहती है, चार दीवारी में

सहेजती- समेटती सामान को

वो सँवारती है घर आँगन को 

वो भी मन-तन से थक जाती है ....


दो मीठे बोल मिटाते हैं

उसकी सारी तकलीफें

यदा-कदा तारीफ से भी

वो गुड़फील करती है 


क्या हुआ जो समय पर

खाना नहीं बना

क्या हुआ जो किसी दिन

घर पूरा फैला हुआ है

क्या हुआ जो तैयार होने में

वो थोड़ी देर करती है 


वो भी रिमोट हाथ में रखकर

तकिये पर सिर टिकाकर

बगल में मोबाईल रखकर

घण्टों न्यूज देखना चाहती है


वो भी हफ्ते में किसी एक दिन

रोजमर्रा के कामों को भूलकर

छह दिनों की ऊर्जा के लिये

अवकाश रखने की हकदार है....


वो याद रखती है, हर तारीख

दूध की नागा, व्रत- त्यौंहार

वो भूल नहीं पाती है कभी भी

जन्मदिनों को,शादी-ब्याह को


उसे भी हक है कि कोई बताये

उसे भी कोई यादगार लम्हा

दिन-रात में कुछ देर ही सही

पर कोई करें उससे कुछ बातें


मंहगा नेकलैस नहीं चाहिये

उसे सरप्राईज चाहिये नया

एक गुलाब भी उसका चेहरा

खुशी से लाल कर सकता है


जब बना रही हो वो खाना

पसीने ले तरबतर परेशान

धीमे पांव जाकर, छू लेना

उसे तरोताज़ा कर सकता है....


जब धो रही हो वो कपड़े

अपनी नाजुक हथेलियों से

"सुनों ! कपड़े मैं सुखा दूंगा"

सुनना उसे अच्छा लगता है


नमक तेज़ हो या मिर्च

उसने चाहकर तो नहीं किया

हम बना ही नहीं सकते तो

कमियां बताना जरूरी तो नहीं


उसे गुस्सा करने दो

उसे खुलकर बोलने दो

उसे अपनी राय रखने दो

उसे भी उन्मुक्त बनने दो


वो भी एक दिल, 

दो किड़नी

एक यकृत रखती है

उसकी भी सांस भरती है

घुटने और कमर दुखती है


वो क्यों ना हँसे सबके सामने

वो क्यों ना सोये देर सुबह तक

वो भी आखिर इन्सान है...

उसके भी छोटे -छोटे से अरमान हैं ।


कुछ नहीं कहती

कुछ नहीं मांगती

कुछ नहीं चाहती

बस छोटी-छोटी 

खुशियां होती है औरतों की..👆🙏🏻🌹
.................................................... #long rime
औरत👉

कुछ नहीं कहती

कुछ नहीं मांगती

कुछ नहीं चाहती

बस छोटी-छोटी 

खुशियां होती है औरतों की..


जरूरत के सामान के साथ

सब छोड़ के आई है

यादों के पुलिन्दे के सिवाय

कुछ भी नहीं लाई है ।


उस निर्वासन, 

उस विलगता, 

उस बिछोह, 

उस अकेलेपन का दर्द 

महसूस भी होना जरूरी है ......


पहले ही दिन से 

सब बदल जाता है

रसोई, आँगन, दरवाजा

बाथरूम, छत और रसोई ।


बीस-पच्चीस बरस तक

जिस जगह खेली-पली-बढ़ी

वो एक पल में छूट जाता है

रह-रहकर बस याद आता है ।


उसे क्या चाहिये

सोना-चांदी, हीरे मोती

मंहगें वस्त्र, धन-दौलत

नहीं... नहीं 

ये सब मिट्टी है उसके लिये

ये सब तो वो संग ही ले आई ।


उसे समानुभूति - सम्मान

करने वाला और 

बिना कहे समझने वाला

एक हमसफर चाहिये...


उसे सच्चा महत्व- प्यार 

देने वाला और 

अकेलापन दूर करने वाला

एक अदद दोस्त चाहिये....


वो रहती है, चार दीवारी में

सहेजती- समेटती सामान को

वो सँवारती है घर आँगन को 

वो भी मन-तन से थक जाती है ....


दो मीठे बोल मिटाते हैं

उसकी सारी तकलीफें

यदा-कदा तारीफ से भी

वो गुड़फील करती है 


क्या हुआ जो समय पर

खाना नहीं बना

क्या हुआ जो किसी दिन

घर पूरा फैला हुआ है

क्या हुआ जो तैयार होने में

वो थोड़ी देर करती है 


वो भी रिमोट हाथ में रखकर

तकिये पर सिर टिकाकर

बगल में मोबाईल रखकर

घण्टों न्यूज देखना चाहती है


वो भी हफ्ते में किसी एक दिन

रोजमर्रा के कामों को भूलकर

छह दिनों की ऊर्जा के लिये

अवकाश रखने की हकदार है....


वो याद रखती है, हर तारीख

दूध की नागा, व्रत- त्यौंहार

वो भूल नहीं पाती है कभी भी

जन्मदिनों को,शादी-ब्याह को


उसे भी हक है कि कोई बताये

उसे भी कोई यादगार लम्हा

दिन-रात में कुछ देर ही सही

पर कोई करें उससे कुछ बातें


मंहगा नेकलैस नहीं चाहिये

उसे सरप्राईज चाहिये नया

एक गुलाब भी उसका चेहरा

खुशी से लाल कर सकता है


जब बना रही हो वो खाना

पसीने ले तरबतर परेशान

धीमे पांव जाकर, छू लेना

उसे तरोताज़ा कर सकता है....


जब धो रही हो वो कपड़े

अपनी नाजुक हथेलियों से

"सुनों ! कपड़े मैं सुखा दूंगा"

सुनना उसे अच्छा लगता है


नमक तेज़ हो या मिर्च

उसने चाहकर तो नहीं किया

हम बना ही नहीं सकते तो

कमियां बताना जरूरी तो नहीं


उसे गुस्सा करने दो

उसे खुलकर बोलने दो

उसे अपनी राय रखने दो

उसे भी उन्मुक्त बनने दो


वो भी एक दिल, 

दो किड़नी

एक यकृत रखती है

उसकी भी सांस भरती है

घुटने और कमर दुखती है


वो क्यों ना हँसे सबके सामने

वो क्यों ना सोये देर सुबह तक

वो भी आखिर इन्सान है...

उसके भी छोटे -छोटे से अरमान हैं ।


कुछ नहीं कहती

कुछ नहीं मांगती

कुछ नहीं चाहती

बस छोटी-छोटी 

खुशियां होती है औरतों की..👆🙏🏻🌹
.................................................... #long rime
utkarshpatel8241

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