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बैठ, मेंढ़ पर गुमसुम देख रहीं थी तबाह खेत को, बड़

बैठ, मेंढ़ पर
गुमसुम देख रहीं थी
तबाह खेत को, 
बड़ी आश लगी थी
लहलहाती अरहर पर..... 
लोग कहते थे
फसल अच्छी होगी... 
उसने भी सोचा था
बेच, साहू का 
कर्ज चुका देगी, 
लिए थे जो
मुनिया की दवा के खातिर... 
मुनिया को अबकी बार 
खिलायेगी, दाल अरहर के.... 
पर सपने सब धराशायी हो गये, 
आंखों के सामने, 
बाढ़ की क्रुर लीला में.... 
अचानक किसी ने पीछे से
पीठ पर धर हाथ कहाँ, 
अरे! 'वो ' मुनिया की अम्मा
जा पटवारी ढेड़ सौ का 
राहत चेक दे रहा है.. 
बाढ़ में तबाह किसानों को, 
उसने सुना, खडी़ हुई, 
फिर चल पड़ी अपने घर
मुनिया के पास..॥ 
© दिनेश कुमार पाठक
 
Read my thoughts on YourQuote app at https://www.yourquote.in/dinesh-kumar-pathak-brh3k/quotes/tbaahii-baitth-menddh-pr-gumsum-dekh-rhiin-thii-tbaah-khet-4sjsj बैठ, मेंढ़ पर
गुमसुम देख रहीं थी
तबाह खेत को, 
बड़ी आश लगी थी
लहलहाती अरहर पर..... 
लोग कहते थे
फसल अच्छी होगी... 
उसने भी सोचा था
बैठ, मेंढ़ पर
गुमसुम देख रहीं थी
तबाह खेत को, 
बड़ी आश लगी थी
लहलहाती अरहर पर..... 
लोग कहते थे
फसल अच्छी होगी... 
उसने भी सोचा था
बेच, साहू का 
कर्ज चुका देगी, 
लिए थे जो
मुनिया की दवा के खातिर... 
मुनिया को अबकी बार 
खिलायेगी, दाल अरहर के.... 
पर सपने सब धराशायी हो गये, 
आंखों के सामने, 
बाढ़ की क्रुर लीला में.... 
अचानक किसी ने पीछे से
पीठ पर धर हाथ कहाँ, 
अरे! 'वो ' मुनिया की अम्मा
जा पटवारी ढेड़ सौ का 
राहत चेक दे रहा है.. 
बाढ़ में तबाह किसानों को, 
उसने सुना, खडी़ हुई, 
फिर चल पड़ी अपने घर
मुनिया के पास..॥ 
© दिनेश कुमार पाठक
 
Read my thoughts on YourQuote app at https://www.yourquote.in/dinesh-kumar-pathak-brh3k/quotes/tbaahii-baitth-menddh-pr-gumsum-dekh-rhiin-thii-tbaah-khet-4sjsj बैठ, मेंढ़ पर
गुमसुम देख रहीं थी
तबाह खेत को, 
बड़ी आश लगी थी
लहलहाती अरहर पर..... 
लोग कहते थे
फसल अच्छी होगी... 
उसने भी सोचा था