रूह की मुख़्तसर आवाज़, मेरी ग़ज़ल, बन गई तरन्नुम-ओ-साज़, मेरी ग़ज़ल। दिल के सुकून की है अब परवाह इसे, छेड़ती एक नया आगाज़, मेरी ग़ज़ल। दर्द मिलने का होता नहीं कोई मलाल, ख़ुशियों की ऊँची परवाज़ मेरी ग़ज़ल। बढ़ाने दो दूरियाँ, ये हक उनको भी है, मेरे पास कल और आज, मेरी ग़ज़ल। करना क्यों है किसी का इंतज़ार 'धुन', संग ही है बन के सरताज, मेरी ग़ज़ल। Rest Zone 'काव्य सृजन' "रूह की मुख़्तसर आवाज़, मेरी ग़ज़ल, बन गई तरन्नुम-ओ-साज़, मेरी ग़ज़ल।" -डॉ नम्रता कुलकर्णी #restzone #rztask367 #rzलेखकसमूह #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #feelings #काव्यसृजन