देख लेना सरल नज़रों से, दिखावें के चश्में से दिखूंगा नहीं.. हुँ एक मात्र बिंदु मेरे वर्तुल का, मध्यमा इसके पर हाँ मैं ख़ुद कभी टिकूंगा नहीं.. आभास का अभय वरदान लिए फिरता सिर आँखों पर, हक़ीक़त के गलियारों में बनके फ़ूल हाँ कभी खिलूँगा नहीं.. रुक गया था इक रोज़ जहाँ "मृगतृष्णा" सा एहसास मिला, ज़ज़्बातों के हुज़ूम में ख़ाली ख़ाली सा "मैं" हाँ फिर कभी युं उमडुँगा नहीं.. समेटकर रखता हुँ मन के मौसम ख़ुद में ही आजकल, मिल भी जाओ कल बन वो अल्हड़ मोर, बनके बारिश पर ख़ुद पर ही अब नहीं बरसूंगा मैं.. #मन_के_मौसम #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #yqhindi