मानूँ क्यों तेरी बात, जब आती नहीं तुझे याद, थोड़ा-थोड़ा कर बहुत ज़्यादा भुलाया है मुझे। आज-2 बोल, देते रहे लम्बे इंतज़ार का कल, थोड़ा-थोड़ा कर बहुत ज़्यादा रुलाया है मुझे। किसी को क़रीब रख,मुझे दिल से दूर किया, थोड़ा-थोड़ा कर बहुत ज़्यादा हटाया है मुझे। एहसास पूरे थे,फिर भी दास्ताँ अधूरी ही रही, थोड़ा-थोड़ा कर बहुत ज़्यादा गँवाया है मुझे। माँगी थी सुकून-छाँव, मिली तन्हाई-धूप 'धुन' थोड़ा-थोड़ा कर बहुत ज़्यादा जलाया है मुझे। **थोड़ा- बहुत, आज- कल, क़रीब- दूर, पूरा- अधूरा, छाँव- धूप नमस्ते लेखकों🌸 कल के "मेरे जीवन का वृतांत" के विजेता हैं: स्वर्ण पदक- Umakshi Kaushik🥇 रजत पदक- Sarita Gaba Bathla🥈 कांस्य पदक- Yashoda Devrani Jadli🥉