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मध्यम वर्गीय परिवार का हाल रस्सी पर करतब दिखा

मध्यम वर्गीय परिवार 

   का हाल रस्सी पर करतब दिखाती उस  लड़की के जैसा होता है जिसको हाथों में पकड़े डंडे में एक ओर जिम्मेवारी तो दूसरी ओर अपने सपनों के बीच संतुलन बना कर निरंतर आगे बढ़ना होता है,अगर गिर गई तब सब कुछ बर्बाद। 
         अपनी जरूरतों को सीमित करना,जुगाड़ तकनीक से बजट सम्हालना,अनावश्यक और अतिआवश्यक चीजों में भेद कर पाना ये सभी प्रबंधन की बारीकियां उन्हें बचपन से सीखने को मिलतीं हैं।
            पारिवारिक जिम्मेवारियों को समझते हुए वे कब बड़े हो जातें हैं,और कब जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ जाती है इसका तो उन्हें पता भी नहीं चलता,ये समाज का वो सबसे बड़ा वर्ग है जिसको सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनैतिक पक्ष को मजबूत करने की अलिखित बाध्यता रहती है,जिसके लिये वे हर संभव प्रयत्न भी करते हैं।
              लेकिन विडम्बना तो ये है कि ये जब ये अपने बुरे दौर से गुज़र रहे होते हैं तब यही समाज,तथाकथित धार्मिक लोग और राजनेता इन्हें इनके हाल पर छोड़ देते हैं। जब यह हालातों का सामना कर निखरता है तो फिर एक बार अपने कर्तव्य पथ पर लग जाता है।
            इन सब के बावजूद यही वो एकमात्र तबका है जो दो समय अपने परिवार के साथ भर पेट भोजन कर सकता है,अपने परिवार के साथ सुख में आनंद और ग़म में दुःख बाँट सकता है,हर रिश्तों की अहमियत को समझ सकता है,अतिथि को देवता की भाँती पूज सकता है और समाज के हर वर्ग को अपने कार्यकुशलता,दक्षता,यथासंभव दान एवं सेवा भाव से संतुष्ट कर सकता है। मध्यम वर्गीय परिवार का हाल रस्सी पर करतब दिखाती उस  लड़की के जैसा होता है जिसको हाथों में पकड़े डंडे में एक ओर जिम्मेवारी तो दूसरी ओर अपने सपनों के बीच संतुलन बना कर निरंतर आगे बढ़ना होता है,अगर गिर गई तब सब कुछ बर्बाद। 
         अपनी जरूरतों को सीमित करना,जुगाड़ तकनीक से बजट सम्हालना,अनावश्यक और अतिआवश्यक चीजों में भेद कर पाना ये सभी प्रबंधन की बारीकियां उन्हें बचपन से सीखने को मिलतीं हैं।
            पारिवारिक जिम्मेवारियों को समझते हुए वे कब बड़े हो जातें हैं,और कब जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ जाती है इसका तो उन्हें पता भी नहीं चलता,ये समाज का वो सबसे बड़ा वर्ग है जिसको सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनैतिक पक्ष को मजबूत करने की अलिखित बाध्यता रहती है,जिसके लिये वे हर संभव प्रयत्न भी करते हैं।
              लेकिन विडम्बना तो ये है कि ये जब ये अपने बुरे दौर से गुज़र रहे होते हैं तब यही समाज,तथाकथित धार्मिक लोग और राजनेता इन्हें इनके हाल पर छोड़ देते हैं। जब यह हालातों का सामना कर निखरता है तो फिर एक बार अपने कर्तव्य पथ पर लग जाता है।
            इन सब के बावजूद यही वो एकमात्र तबका है जो दो समय अपने परिवार के साथ भर पेट भोजन कर सकता है,अपने परिवार के साथ सुख में आनंद और ग़म में दुःख बाँट सकता है,हर रिश्तों की अहमियत को समझ सकता है,अतिथि को देवता की भाँती पूज सकता है और समाज के हर वर्ग को अपने कार्यकुशलता,दक्षता,यथासंभव दान एवं सेवा भाव से संतुष्ट कर सकता है।
#middleclassfamily
मध्यम वर्गीय परिवार 

   का हाल रस्सी पर करतब दिखाती उस  लड़की के जैसा होता है जिसको हाथों में पकड़े डंडे में एक ओर जिम्मेवारी तो दूसरी ओर अपने सपनों के बीच संतुलन बना कर निरंतर आगे बढ़ना होता है,अगर गिर गई तब सब कुछ बर्बाद। 
         अपनी जरूरतों को सीमित करना,जुगाड़ तकनीक से बजट सम्हालना,अनावश्यक और अतिआवश्यक चीजों में भेद कर पाना ये सभी प्रबंधन की बारीकियां उन्हें बचपन से सीखने को मिलतीं हैं।
            पारिवारिक जिम्मेवारियों को समझते हुए वे कब बड़े हो जातें हैं,और कब जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ जाती है इसका तो उन्हें पता भी नहीं चलता,ये समाज का वो सबसे बड़ा वर्ग है जिसको सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनैतिक पक्ष को मजबूत करने की अलिखित बाध्यता रहती है,जिसके लिये वे हर संभव प्रयत्न भी करते हैं।
              लेकिन विडम्बना तो ये है कि ये जब ये अपने बुरे दौर से गुज़र रहे होते हैं तब यही समाज,तथाकथित धार्मिक लोग और राजनेता इन्हें इनके हाल पर छोड़ देते हैं। जब यह हालातों का सामना कर निखरता है तो फिर एक बार अपने कर्तव्य पथ पर लग जाता है।
            इन सब के बावजूद यही वो एकमात्र तबका है जो दो समय अपने परिवार के साथ भर पेट भोजन कर सकता है,अपने परिवार के साथ सुख में आनंद और ग़म में दुःख बाँट सकता है,हर रिश्तों की अहमियत को समझ सकता है,अतिथि को देवता की भाँती पूज सकता है और समाज के हर वर्ग को अपने कार्यकुशलता,दक्षता,यथासंभव दान एवं सेवा भाव से संतुष्ट कर सकता है। मध्यम वर्गीय परिवार का हाल रस्सी पर करतब दिखाती उस  लड़की के जैसा होता है जिसको हाथों में पकड़े डंडे में एक ओर जिम्मेवारी तो दूसरी ओर अपने सपनों के बीच संतुलन बना कर निरंतर आगे बढ़ना होता है,अगर गिर गई तब सब कुछ बर्बाद। 
         अपनी जरूरतों को सीमित करना,जुगाड़ तकनीक से बजट सम्हालना,अनावश्यक और अतिआवश्यक चीजों में भेद कर पाना ये सभी प्रबंधन की बारीकियां उन्हें बचपन से सीखने को मिलतीं हैं।
            पारिवारिक जिम्मेवारियों को समझते हुए वे कब बड़े हो जातें हैं,और कब जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ जाती है इसका तो उन्हें पता भी नहीं चलता,ये समाज का वो सबसे बड़ा वर्ग है जिसको सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक और राजनैतिक पक्ष को मजबूत करने की अलिखित बाध्यता रहती है,जिसके लिये वे हर संभव प्रयत्न भी करते हैं।
              लेकिन विडम्बना तो ये है कि ये जब ये अपने बुरे दौर से गुज़र रहे होते हैं तब यही समाज,तथाकथित धार्मिक लोग और राजनेता इन्हें इनके हाल पर छोड़ देते हैं। जब यह हालातों का सामना कर निखरता है तो फिर एक बार अपने कर्तव्य पथ पर लग जाता है।
            इन सब के बावजूद यही वो एकमात्र तबका है जो दो समय अपने परिवार के साथ भर पेट भोजन कर सकता है,अपने परिवार के साथ सुख में आनंद और ग़म में दुःख बाँट सकता है,हर रिश्तों की अहमियत को समझ सकता है,अतिथि को देवता की भाँती पूज सकता है और समाज के हर वर्ग को अपने कार्यकुशलता,दक्षता,यथासंभव दान एवं सेवा भाव से संतुष्ट कर सकता है।
#middleclassfamily