कभी कपड़े बदलता है कभी लहजा बदलता है मगर इन कोशिशो से क्या कहीं शजरा बदलता है तुमहारे बाद अब जिस का भी जी चाहे मुझे रखले जनाज़ा अपनी मर्ज़ी से कहाँ कांधा बदलता है अजब ज़िद्दी मुसव्विर है ज़रा पहचान की खातिर मिरी तस्वीर का हर रोज़ वो चेहरा बदलता है रिहाई मिल तो जाती है परिंदे को मगर इतनी सफाई की गरज़ से जब कभी पिंजरा बदलता है मिरी आंखों की पहली आखिरी हद है तिरा चेहरा नही मैं वो नही जो रोज़ आईना बदलता है ये है यहाँ सब कुछ बदल जाता है पल भर में मुझे अब देखना ये है कि तू कितना बदलता है वसीम नादिर बदायूनी adhura naam