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वक्त की कश्ती पर जो मैं सवार हुआ बहता ही रहा अवि

वक्त की कश्ती पर
 जो मैं सवार हुआ 
बहता ही रहा अविरल
चाहे कैसा मझदार हुआ

डुबोने की चाहत में 
तूफां कई आये 
एक एक कर उनसे भी
निपटता अब तैयार हुआ ....  वक्त की कश्ती पर
 जो मैं सवार हुआ 
बहता ही रहा अविरल
चाहे कैसा मझदार हुआ

डुबोने की चाहत में 
तूफां कई आये 
एक एक कर उनसे भी
वक्त की कश्ती पर
 जो मैं सवार हुआ 
बहता ही रहा अविरल
चाहे कैसा मझदार हुआ

डुबोने की चाहत में 
तूफां कई आये 
एक एक कर उनसे भी
निपटता अब तैयार हुआ ....  वक्त की कश्ती पर
 जो मैं सवार हुआ 
बहता ही रहा अविरल
चाहे कैसा मझदार हुआ

डुबोने की चाहत में 
तूफां कई आये 
एक एक कर उनसे भी