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चांद को मैंने, मुझे छोड़ जाते देखा । इन हवाओं को भ

चांद को मैंने, मुझे छोड़ जाते देखा ।
इन हवाओं को भी मुझे तोड़ जाते देखा।
कहीं कुछ तो था अपना, 
उसे भी गुम होते देखा।

©मुसाफिर
  #कौन